रामेश्वर सिंह राजपुरोहित
- जाने क्या महत्त्व है गौ दान दान का?
- गौ सेवा से बड़ी नही जग में कोई और सेव
धर्म शास्त्रों के अनुसार मृत्योपरांत प्रत्येक जीव को परलोक यात्रा के समय, एक विशेष नदी पार करनी पड़ती है। जिसमें जीव अपने कर्मों के अनुसार नाना प्रकार के कष्ट सहता है।
अत: वैतरणी नदी की यात्रा को सुखद बनाने के लिए मृतक व्यक्ति के नाम वैतरणी गोदान का विशेष महत्व है। पद्धति तो यह है कि मृत्यु काल में गौमाता की पूंछ हाथ में पकड़ाई जाती है, या स्पर्श करवाई जाती है। लेकिन ऐसा न होने की स्थिति में गाय का ध्यान करवा कर प्रार्थना इस प्रकार करवानी चाहिए।
वैतरणी गोदान मंत्र-
"धेनुके त्वं प्रतीक्षास्व यमद्वार महापथे।
उतितीर्षुरहं भद्रे वैतरणयै नमौऽस्तुते।।
पिण्डदान कृत्वा यथा संभमं गोदान कुर्यात।"
गरूड़ पुराण में बताया गया है- यमलोक का रास्ता भयानक और पीड़ा देने वाला है। वहां एक नदी बहती है जो कि सौ योजना अर्थात एक सौ बीस किलोमीटर है। इस नदी में जल के स्थान पर रक्त और मवाद बहता है और इसके तट हड्डियों से भरे हैं। मगरमच्छ, सूई के समान मुखवाले भयानक कृमि, मछली और वज्र जैसी चोंच वाले गिद्धों का ये निवास स्थल है।
यम के दूत जब धरती से लाए गए व्यक्ति को इस नदी के समीप लाकर छोड़ देते हैं, तो नदी में से जोर-जोर से गरजने की आवाज आने लगती है। नदी में प्रवाहित रक्त उफान मारने लगता है। पापी मनुष्य की जीवात्मा डर के मारे थर-थर कांपने लगती है।
केवल एक नाव के राही ही इस नदी को पार किया जा सकता है। उस नाव का नाविक एक प्रेत है। जो पिण्ड से बने शरीर में बसी आत्मा से प्रश्न करता है कि किस पुण्य के बल पर तुम नदी पार करोगे।
जिस व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में गौदान की हो केवल वह व्यक्ति इस नदी को पार कर सकता है, अन्य लोगों को यमदूत नाक में कांटा फंसाकर आकाश मार्ग से नदी के ऊपर से खींचते हुए ले जाते हैं।
शास्त्रों में कुछ ऐसे व्रत और उपवास हैं, जिनका पालन करने से गौदान का फल प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार दान वितरण है। इस नदी का नाम वैतरणी है। अत: दान कर जो पुण्य कमाया जाता है, उसके बल पर ही वैतरणी नदी को पार किया जा सकता है।
इसलिए नियमित रूप से हर मानव को गौ सेवा करनी चाहिए। कहीं असहाय गौ वंश दिखाई दे तो तुरंत उसकी सेवा में लग जाए। ये सब पुण्य से भी बड़ा पुण्य है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें