रावण दहन के दर्शन क्यों है आवश्यक, इसका हिन्दू धर्म में है विशेष महत्व

दशहरा पर्व पर रावण दहन करना सनातन धर्म में विशेष महत्व रखता है। वही रावण दहन का दर्शन करना शुभ माना जाता है। इसलिए हम हिन्दू को दशहरा पर्व मनाना चाहिए। वही दहन का दर्शन भी करना चाहिए।
दशहरा पर्व का क्या है हिन्दुओ में महत्व - 
दशहरे का उत्सव वीरता और शौर्य का उत्सव है। इस दिन हमे अपने अंदर की सभी बुराई ख़तम करके एक अच्छे इंसान बनने का प्रण लेना चाइये। इससे हमे यह शिक्षा भी मिलती है की अगर कभी युद्ध करना जरूरी हो तो शत्रु के आक्रमण का इंन्तजार नहीं करना चाइये और यही एक कुशल राजनीती है।
रावण एक महान पंडित था – रावण का इतिहास
क्या आप जानते है रावण, राक्षस वंश का नहीं था।रावण एक ऋषि पुत्र था। रावण के नाना सुमाली एक राक्षस कुल के थे उन्होंने अपने राक्षस वंश को आगे बढ़ाने के लिए अपनी पुत्री केकसी का विवाह रावण के पिता से करा दिया था। रावण की राक्षस कुल की थी इसलिए रावण ऋषिपुत्र होने के बाद भी एक राक्षस बन गया था परन्तु उस समय रावण से बड़ा ज्ञानी को उससे बड़ा शिव भक्त कोई भी नहीं था। रावण कोई नाम नहीं था बल्कि यह राक्षस साम्राज्य का एक पद था। राक्षसो के महाराजा को रावण कहा जाता था। रावण का असली नाम दसग्रीव था क्योंकि रावण के दस सर थे इसलिए उसका नाम दसग्रीव था। रावण को छ दर्शन और चार वेदो का सम्पूर्ण ज्ञान था इसलिए रावण को दसकंठी भी कहते थे।
रावण एक प्रकांड पंडित था रावण को रसायन शास्त्र और भौतिक शास्त्र का अलोकिक ज्ञान था वह महान शिव भक्त था। एक बार रावण भगवन शिव के कैलाश को अपनी शक्ति से उठाकर लंका लेकर जाने लगा था जिससे की वह उनका सबसे बड़ा भक्त बन सके तब भगवन शिव ने अपने अंघूठे से कैलाश को दबा दिया था।
रावण उसके नीचे दबने ही वाला था तभी रावण ने भगवन शिव से शमा याचना की और एक सुन्दर काव्य की रचना की वह काव्य शिव तांडव स्त्रोत के नाम से प्रसिद्ध है क्योंकि उस काव्य में शिव तांडव का सुन्दर वर्णन है। रावण मर्यादा का पालक था। रावण को पता था की सीता माता वनवास पर है इसलिए रावण ने उन्हें महल में नहीं रखा और वह शास्त्र में लिखी हर बात का भी पालन करता था इसलिए उसने कभी सीता माता को स्पर्श तक नहीं किया। रावण एक महान ज्ञानी था उसे पता था की उद्धार श्री राम के हाथो होगा इसलिए उसने माता सीता का अपहरण किया था यह सब विधि लिखित था।
दशहरा का महत्व
दशहरा जिसको (विजयदशमी या आयुध-पूजा) के नाम से भी जाना जाता है।यह हिन्दुओ का एक प्रमुख त्यौहार है। दशहरा का त्यौहार अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाया जाता है। इसी दिन भगवान राम जी ने रावण का वध किया था और देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था। दशहरा फेस्टिवल को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में भी मनाया जाया है। इसी वजह से दशमी को ‘विजयादशमी’ के नाम से जाना जाता है।
(दशहरा = दशहोरा = दसवीं तिथि)
दशहरा शुभ तिथियों में से एक है, इनमे अन्य 2 तिथियाँ और है। चैत्र शुक्ल। कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा।
विजयादशमी अर्थात् दशहरा इस दिन भगवन श्री राम ने रावण का वध करके असत्य का विनाश करके सत्य पर विजय प्राप्त की थी तथा इसे विजयादशमी इसलिए भी कहते है क्योंकि ये दशमी तिथि को होता है।दशहरा वर्ष की तीन सबसे शुभ तिथि में से एक है। दशहरा के दिन लोग शस्त्र पूजन भी करते है और किसी नए कार्य की शुरुआत के लिए भी ये तिथि बहुत शुभ मानी जाती है।
इस दिन मेले लगते है लोग मेले देखने जाते है और नौ दिन पहले से रामलीला का आरम्भ होता है। नौ दिन की रामलीला सम्पूर्ण होने के बाद दसवे दिन रावण का पुतला बनाकर फूंका जाता है। दशहरा का त्यौहार पुरे भारत वर्ष में मनाया जाता है। दशहरे के दिन दस तरह के पापो का अंत होता है। पाप काम क्रोध मोह लोभ मतसर अहंकार आलस्य हिंसा व चोरी इन सब का त्याग करके सद्प्रेरणा का आवागमन होता है।
दशहरा इसी उद्देश्य से मनाया जाता है ताकि बुराई पर अच्छाई की जीत हो नवरात्रे शुरू होने के समय ही घर की औरते बान बोती है। ये बान किसी भी मिटटी के बर्तन में जों के बीज बोकर उगाये जाते है। विजयादशमी के दिन सभी बहने फिर ये बान अपने भाइयो के कान पर लगाती है और उनकी विजय की कामना करती है। इस दिन शक्ति पूजन भी होता है| बहुत लोग ऐसे होते है जिनके यह कोई न कोई शक्ति पूजी जाती है। वे लोग इस दिन अपनी अपनी कुल देवी की कड़ाई क़र (कुलदेवी के पसंद का खाना) उन्हें पूजते है तथा गांव के लोग गोबर से दशहरा मनाते है। मतलब गाय के शुद्ध गोबर से विजयादशमी के दिन एक देवता बनाते है और उन्हें भोग लगाकर उन्हें पूजते है।नवरात्री के दिनों में ही शाँजी माई भी पूजी जाती है। ये अधिकतर पूर्वी भारत में किया जाता है। मिटटी एक मूर्ति दीवार पर लगाते है। इस मूर्ति को गोबर से दीवार पर चिपकाया जाता है और इस मूर्ति के आस पास मिटटी के ही चाँद तारे बनाकर गोबर से चिपकाये जाते है और नौ दिन तक इनकी पूजा की जाती है। सुबह शाम आरती कर मीठे का भोग लगाते है और दशहरा के दिन उसके पास एक मिटटी का गुड्डा भी लगाया जाता है फिर वो गुड्डा और शांजी दोनों पानी में बहा दिए जाते है। कहते है वो गुड्डा शांजी का भाई होता है जो उसे वापस ससुराल छोड़ने जाता है।वर्ष में इन नौ दिन वो अपने घर होती है तथा बाद में वापस ससुराल चली है। विजयादशमी का महत्व बहुत विस्तार पूर्वक शास्त्रों में लिखा है। रामायण में भी इसका पूर्ण रूप से विस्तार है।

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